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लेक्चर मत दीजिए… बिहार में SIR को लेकर SC में सुनवाई, भावी CJI के सामने ही भड़क गए EC के वकील

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नई दिल्‍ली । बिहार(Bihar) में मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले पर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) में सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष अदालत ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (BSLSA) से कहा कि वह अपने जिला स्तरीय निकायों को निर्देश जारी करे कि वे अंतिम मतदाता सूची से बाहर किए गए 3.66 लाख मतदाताओं को निर्वाचन आयोग में अपील दायर करने में मदद करें। शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि उसे उम्मीद थी कि मामले में पक्ष बनाए जाने के बाद राजनीतिक इस कवायद के संबंध में अपनी शिकायतें सामने रखेंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग द्वारा किए गए SIR से संतुष्ट हैं।

देश के भावी CJI जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि सभी को अपील करने का उचित अवसर दिया जाए और उनके पास विस्तृत आदेश होने चाहिए कि उनके नाम क्यों शामिल नहीं किए गए। एक पंक्ति का गूढ़ आदेश नहीं होना चाहिए।’’ पीठ ने ये बी कहा कि SIR प्रक्रिया के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची से बाहर कर दिए गए मतदाताओं की अपील को निर्धारित समयसीमा में और कारण सहित आदेश के माध्यम से निपटाने के प्रश्न पर 16 अक्टूबर को अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा।

योगेन्द्र यादव की क्या थी दलील?

इसी बीच, राजनीतिक कार्यकर्ता और चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि बिहार में SIR के कारण भारत के इतिहास में अब तक का सबसे बड़े मतदाता वर्ग को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग द्वारा प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची में 45,000 नाम अस्पष्ट हैं, जबकि 4 लाख से ज्यादा मतदाताओं के मकान नंबर ‘0’ लिखे गए हैं, जो गड़बड़ी की ओर संदेह पैदा करते हैं।

संशोधन की प्रकृति पर प्रश्नचिह्न

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, योगेंद्र यादव ने आज की सुनवाई के अंत में पीठ से कहा, “अभी भी मतदाता सूचियों में सुधार की जरूरत है और कोई भी यह नहीं कह सकता कि चुनाव आयोग ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना उनका कर्तव्य भी है। यह संशोधन की प्रकृति पर प्रश्नचिह्न है। इस विशेष गहन संशोधन ने एक सौम्य प्रक्रिया को हथियार बना दिया है। पहला हथियार सिस्टम से बहिष्कार है। इसके बाद संरचनात्मक बहिष्कार है और फिर लक्षित बहिष्कार की संभावना है।”

इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ

यादव ने आगे कहा कि देश भर में मतदाता सूचियों का मूल्यांकन पूर्णता, सटीकता और निष्पक्षता के आधार पर किया जाता है। उन्होंने अदालत को बताया कि इन तीनों ही पहलुओं पर हमारे सामने एक बहुत ही गंभीर समस्या है। उन्होंने दलील दी, “हम इसकी पूर्णता के पक्ष में हैं। एसआईआर के कारण मतदाता सूची में अब तक की सबसे बड़ी कमी आई है। 47 लाख की कमी आई है। इतिहास में, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। बिहार की वयस्क जनसंख्या देखिए। ये केंद्र सरकार के विशेषज्ञ समूह के अनुमान हैं। सितंबर 2025 में यह 8 करोड़ 22 लाख थी। जब एसआईआर शुरू हुआ, तब यह संख्या 7.89 लाख थी।”

20 फीसदी फॉर्म BLO द्वारा भरे गए

बिहार में किए गए SIR के बारे में यादव ने आगे कहा, “लगभग 20 फीसदी फॉर्म बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) द्वारा भरे गए हैं। अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो छूटे हुए लोगों की संख्या 65 लाख नहीं, बल्कि 2 करोड़ होती। लेकिन हो सकता है कि यह समाधान अन्य राज्यों में न हो।” इस पर इस जस्टिस बागची ने टिप्पणी की कि ज़्यादातर संपन्न लोग चुनावी प्रक्रिया से मुंह मोड़े हुए हैं लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोग इसमें भी उत्साहित नजर आए। यादव ने भी इस बात पर सहमति जताई।

अधिकांश मामलों में ‘वंशावली’ का रास्ता अपनाया

यादव ने आगे कहा कि आयोग (ECI) ने SIR के दौरान अधिकांश मामलों में ‘वंशावली’ का रास्ता अपनाया है। यादव ने कहा, “ECI ने इस बार कुछ बेहतरीन किया… उन्होंने अपने अधिकारियों से कहा कि अगर माताजी-पिताजी नहीं मिल रहे हैं, तो चाचा-नाना, ताऊ, जो मिले, डाल दो… क्या वे दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही करेंगे? करीब 40 फीसदी मतदाताओं ने 11 में से कोई भी दस्तावेज़ दाखिल नहीं किया और वंशावली के ज़रिए ही वे मतदाता सूची में शामिल हो गए।”

EC के वकील यादव पर भड़के

इस दलील पर चुनाव आयोग से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने आपत्ति जताई और यादव पर कोर्टरूम में ही भड़क गए। उन्होंने जज से कहा, “यह सब क्या है? क्या इन सबका जिक्र हलफ़नामे में है? यह कोई लेक्चर रूम नहीं है, जो यहां लेक्चर सुनाएं।” उन्होंने यादव से कहा कि इस पर लेक्चर मत दीजिए। इस पर यादव ने जवाब दिया कि इसके बजाय चुनाव आयोग हलफनामा दाखिल कर सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार SIR के परिणामस्वरूप लिंग अनुपात में 10 वर्षों की बढ़त खत्म हो गई है।

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