Recent News

Copyright © 2024 Blaze themes. All Right Reserved.

कैसे विवादों ने पार्टियों को कमजोर किया?

indiannewsportal.com

Share It:

Table of Content


Vanshvad Family Politics एक बार फिर चर्चा में है, खासकर तब जब बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की बड़ी हार के बाद लालू परिवार का विवाद खुलकर सामने आ गया। नतीजों के तुरंत बाद लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने घर और पार्टी दोनों छोड़ दिए, जिससे RJD की आंतरिक खींचतान उजागर हो गई। चुनावी दौर से ही शुरू हुआ यह विवाद पार्टी की छवि और संगठन पर भारी पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि जहां परिवार टूटता है, वहां पार्टी की मजबूती, वोटरों का भरोसा और चुनावी परिणाम सीधे प्रभावित होते हैं—और यही विपक्ष के लिए फायदा का मौका बन जाता है।

भारत की राजनीति में Vanshvad Family Politics कोई नई बात नहीं है। कई बड़े राजनीतिक घरानों में पार्टी और वोट बैंक को संपत्ति की तरह बांटने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इसी वजह से पारिवारिक तनाव बढ़ता है, जिसका असर सीधे सियासत और चुनावों में दिखता है।

उदाहरण के तौर पर, बिहार में पासवान परिवार का विवाद चाचा-भतीजे की लड़ाई में बदल गया और लोजपा दो गुटों में टूट गई। यूपी में मुलायम सिंह यादव परिवार का विवाद भी वर्षों तक चला, जिससे समाजवादी पार्टी को 2017 और 2022 के चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ा।

महाराष्ट्र में भी पवार और ठाकरे परिवारों की अंदरूनी खींचतान ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए। एक तरफ शरद और अजीत पवार के बीच दरार पड़ी, तो दूसरी तरफ उद्धव और राज ठाकरे की दूरी ने शिवसेना की ताकत कमजोर कर दी।

दक्षिण भारत भी इससे अछूता नहीं है। आंध्र प्रदेश में जगन और शर्मिला की खींचतान वाईएसआर कांग्रेस को कमजोर कर गई। वहीं तेलंगाना में KCR के परिवार में उत्तराधिकार को लेकर हुए विवाद ने बीआरएस को सत्ता से बाहर कर दिया।

 

Tags :

Grid News

Latest Post

Find Us on Youtube

is not relation with any media house or any media company tv channel its independent website provide latest news and review content.

Latest News

Most Popular