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चार वर्षों में 400 फीसदी फसल को नुकसान

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नई दिल्ली। देश में जलवायु संकट गहराया है और 2025 (जनवरी से सितंबर) में 99 फीसदी दिन किसी न किसी चरम मौसमी घटना की चपेट में रहे। देश ने लू, शीत लहर, बिजली, तूफान, भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाओं का सामना किया। इस भयावह स्थिति का मानवीय और आर्थिक दोनों तरह से भारी खामियाजा चुकाना पड़ा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ की वार्षिक क्लाइमेट इंडिया 2025 रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक इन नौ महीनों में, चरम मौसमी घटनाओं ने 4,064 लोगों की जान ली, जो पिछले चार वर्षों की तुलना में 48 फीसदी की वृद्धि है। कृषि क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, जिसमें 9.47 मिलियन हेक्टेयर (करीब 47 मिलियन एकड़) फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ, जो चार वर्षों में 400 फीसदी की भारी वृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा, 99,533 घर नष्ट हुए और लगभग 58,982 जानवरों की मौत हुई। 2025 में, कम से कम 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2022 के बाद से सबसे अधिक चरम मौसमी दिन दर्ज किए गए। फरवरी से सितंबर 2025 तक, लगातार आठ महीनों तक देश के 30 या उससे अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चरम मौसम की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं।
हिमाचल में सबसे अधिक 257 चरम मौसमी दिन रहे
हिमाचल प्रदेश (257 दिन) में देश में सबसे अधिक चरम मौसमी दिन रहे, जबकि मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 532 मौतें दर्ज की गईं। रिपोर्ट बताती है कि मॉनसून का मौसम सबसे अधिक विनाशकारी रहा। लगातार चौथे वर्ष, जून से सितंबर तक के सभी 122 मॉनसून दिन चरम मौसम से प्रभावित रहे, जिससे 3,007 मौतें हुईं। कुल 4,064 मौतों में, भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन सबसे घातक रहे, जिनसे 2,440 मौतें हुईं, इसके बाद बिजली और तूफान से 1,456 मौतें हुईं।

2025 में जलवायु के कई रिकॉर्ड टूटे
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2025 ने कई जलवायु रिकॉर्ड तोड़े। जनवरी 1901 के बाद पांचवां सबसे शुष्क महीना था, जबकि फरवरी 124 वर्षों में सबसे गर्म रहा। सितंबर में देश का सातवां सबसे अधिक औसत तापमान दर्ज किया गया। महाराष्ट्र 84 लाख हेक्टेयर के साथ फसल क्षेत्र के नुकसान के मामले में सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य था। क्षेत्रीय रूप से, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में घटनाओं की सबसे अधिक आवृत्ति दर्ज की गई, जबकि मध्य क्षेत्र में 1,093 लोगों की मौतें हुईं।

जलवायु परिवर्तन का पैमाना समझना होगा
रिपोर्ट जारी करते हुए, सीएसई की महानिदेशक सुनिता नारायण ने कहा, देश को अब सिर्फ आपदाओं को गिनने की जरूरत नहीं है, बल्कि उस पैमाने को समझने की जरूरत है जिस पर जलवायु परिवर्तन हो रहा है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन कटौती की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया, क्योंकि इतने बड़े पैमाने की आपदाओं के लिए कोई भी अनुकूलन संभव नहीं होगा। सीएसई के कार्यक्रम निदेशक किरन पांडे ने मानसून के दौरान बढ़ते तापमान को चिंताजनक बताया, जो अनियमित और चरम मौसमी घटनाओं को ट्रिगर कर सकता है। डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा कि यह रिपोर्ट एक आवश्यक चेतावनी है और बिना निर्णायक शमन प्रयासों के आज की आपदाएं कल का नया सामान्य बन जाएंगी।

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