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बिहार के बाद बंगाल पर BJP की नज़र, ममता दीदी को टक्कर देने की रणनीति तैयार, जानिए क्या है पूरा प्लान?

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BJP: बीजेपी कैडर की जीत की भूख और हार से लड़ने का माद्दा देखना हो तो कोई दल इस पार्टी की पुरानी फ़ितरतों को सलीके से पढ़ ले, सारा डाउट क्लियर हो जाएगा. इससे पहले की बंगाल फ़तह करने की बीजेपी की जीत की रणनीति और टार्गेट का ज़िक्र किया जाए, आप असम को याद कर लीजिए. जनसंघ से लेकर बीजेपी तक के संपूर्ण अस्तित्व में पहली बार 2016 में आकर असम में कमल खिला. यानी दशकों के संघर्ष के बाद 2016 के विधानसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने असम में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. जबकि, इसके पीछे कई पीढ़ियां जीत का ख़्वाब लिए मर-खप गईं. बीजेपी के संघर्ष और संघर्ष को अगली पीढ़ी में पास-ऑन करने के जज़्बे से अन्य दलों को भी सीख लेनी चाहिए.

नए दौर की बीजेपी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में अपनी राजनीतिक हैसियत का विस्तार कर रही है. लेकिन, दो बार से लगातार पश्चिम बंगाल के क़िले को ढहाने का पुरज़ोर प्रयास बीजेपी का विफल रहा है. लेकिन, सवाल फिर से आ खड़ा है, कि क्या बीजेपी पश्चिम बंगाल में दीदी का किला इस बार के विधानसभा चुनाव में ध्वस्त कर पाएगी? जीत की ज़िद लिए बीजेपी के महारथी लगातार पश्चिम बंगाल को टार्गेट पर लिए हुए हैं। बिहार के “जंगलराज” के बाद अब अगली रणनीति पश्चिम बंगाल के “जंगलराज” पर फ़ोकस करने का है.

बिहार विधानसभा चुनावों में अपनी शानदार जीत के बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि बिहार की सफलता बंगाल में ‘जंगल राज’ को खत्म करने का रास्ता साफ कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय से 14 नवंबर को अपनी विजय संबोधन में स्पष्ट कहा था, “बिहार की जीत ने बंगाल में भाजपा की सफलता का मार्ग प्रशस्त किया है. मैं बंगाल की जनता को आश्वस्त करता हूं कि आपके समर्थन से हम राज्य में जंगल राज का अंत करेंगे.”

बिहार में भाजपा को मिली भारी सफलता ने न सिर्फ़ उसके गठबंधन सहयोगी नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) को मजबूत किया, बल्कि पूर्वी भारत में पार्टी की पकड़ को और गहरा किया। लेकिन अब फोकस 2026 के बंगाल विधानसभा चुनावों पर है, जो भाजपा की ‘इच्छा सूची’ में सबसे ऊपर है. 2021 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की ‘बंगाली अस्मिता’ की राजनीति ने बीजेपी को ‘बाहरी’ का ठप्पा देकर करारी शिकस्त दी थी. तब टीएमसी का नारा था- ‘बंगला निजेर मेये के चाहे’, यानी बंगाल अपनी बेटी (ममता बनर्जी) चाहता है. भाजपा के आंतरिक सूत्रों के अनुसार पार्टी की तरफ़ से यह गंभीर गलती थी कि उसने उस समय इस टैगलाइन को आक्रामक तरीके से काउंटर नहीं किया.

रणनीति: बीजेपी के डीएनए में बंगाल!
अब भाजपा अपनी जड़ों को याद दिलाने की रणनीति पर काम कर रही है. पार्टी का दावा है कि वह पश्चिम बंगाल की ही संतान है, क्योंकि उसके संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी राज्य से थे. भाजपा को भारतीय जन संघ का प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी बताते हुए, अभियान में बंगाली संस्कृति से विचारधारा को जोड़ने का प्रयास किया जाएगा. राज्य इकाई के फैसलों में बाहरी नेताओं पर कम निर्भरता रहेगी. उम्मीदवार चयन में युवा, स्वच्छ छवि वाले और शिक्षित चेहरों को प्राथमिकता मिलेगी, ताकि पार्टी की इमेज मजबूत हो. चुनाव से ठीक पहले अन्य दलों से बड़े स्तर पर नेताओं को शामिल करने से भी परहेज होगा, जैसी पिछली गलतियां हुईं.

बंगाल अभियान के 10 पॉइंट तय
अभियान के 10 प्रमुख बिंदु तय हो चुके हैं. इनमें खराब कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार, अवैध घुसपैठ, राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र का ‘उपहास’ शामिल हैं. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, जो बंगाल चुनाव प्रभारी हैं, वे लगातार मीडिया के लाइम-लाइट से दूर रहकर कोलकाता में साप्ताहिक बैठकें कर रहे हैं. 80,000 बूथों पर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं. बंगाली पहचान को मजबूत करने के लिए ‘जय मां काली’ और ‘जय मां दुर्गा’ जैसे नारे इस्तेमाल हो रहे हैं. नए राज्य अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य की नियुक्ति ऊपरी जाति और बंगाली भद्रलोक वर्ग तक पहुंच का संकेत है.

पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ेगी पार्टी
टीएमसी के पास ममता जैसी जननेत्री है, लेकिन भाजपा मुख्यमंत्री पद का चेहरा उतारने की बजाय सामूहिक नेतृत्व और मोदी पर दांव लगाएगी. महिलाओं की सुरक्षा और ‘मां-माटी-मानुष’ नारे पर टीएमसी की नाकामी उजागर होगी. अभी से स्थानीय कार्यकर्ता और नेता चुनाव आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) में जनता की मदद कर रहे हैं. हेल्पडेस्क खोले गए हैं. भाजपा की यह तैयारी बंगाल में लंबे संघर्ष और राजनीतिक ज़िद की ओर इशारा करती है. बिहार की जीत ने आत्मविश्वास दिया, लेकिन ममता की मशीनरी को तोड़ना आसान नहीं. पार्टी का लक्ष्य साफ है कि अस्मिता की राजनीति को तोड़कर शासन की कमजोरियों पर हमला किया जाए.

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